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इ॒माम॑गृभ्णन् रश॒नामृ॒तस्य॒ पूर्व॒ऽआयु॑षि वि॒दथे॑षु क॒व्या। सा नो॑ऽअ॒स्मिन्त्सु॒तऽआब॑भूवऽऋ॒तस्य॒ साम॑न्त्स॒रमा॒रप॑न्ती ॥२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इ॒माम्। अ॒गृ॒भ्ण॒न्। र॒श॒नाम्। ऋ॒तस्य॑। पूर्वे॑। आयु॑षि। वि॒दथे॑षु। क॒व्या। सा। नः॒। अ॒स्मिन्। सु॒ते। आ। ब॒भू॒व॒। ऋ॒तस्य॑। साम॑न्। स॒रम्। आ॒रप॒न्तीत्या॒ऽरप॑न्ती ॥२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:22» मन्त्र:2


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को आयुर्दा कैसे वर्त्तनी चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (ऋतस्य) सत्य कारण के (सरम्) पाने योग्य शब्द को (आरपन्ती) अच्छे प्रकार प्रगट बोलती हुई (आ, बभूव) भलीभाँति विख्यात होती वा जिस (इमाम्) इस को (ऋतस्य) सत्यकारण की (रशनाम्) व्याप्त होनेवाली डोर के समान (विदथेषु) यज्ञादिकों में (पूर्वे) पहिली (आयुषि) प्राणधारण करनेहारी आयुर्दा के निमित्त (कव्या) कवि मेधावी जन (अगृभ्णन्) ग्रहण करें (सा) वह बुद्धि (अस्मिन्) इस (सुते) उत्पन्न हुए जगत् में (नः) हम लोगों के (सामन्) अन्त के काम में प्रसिद्ध होती अर्थात् कार्य की समाप्ति पर्य्यन्त पहुँचाती है ॥२ ॥
भावार्थभाषाः - जैसे डोर से बँधे हुए प्राणी इधर-उधर भाग नहीं जा सकते, वैसे युक्ति के साथ धारण की हुई आयु ठीक समय के बिना नहीं भाग जाती ॥२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैरायुः कथं वर्त्तितव्यमित्याह ॥

अन्वय:

(इमाम्) (अगृभ्णन्) गृह्णीयुः (रशनाम्) व्यापिकां रज्जुमिव (ऋतस्य) सत्यस्य कारणस्य (पूर्वे) पूर्वस्मिन् (आयुषि) प्राणधारणे (विदथेषु) यज्ञादिषु (कव्या) कवयः। अत्र सुपां सुलुग् [अ०७.१.३९] इति विभक्तेर्ङ्यादेशः (सा) (नः) अस्माकम् (अस्मिन्) (सुते) उत्पन्ने जगति (आ) (बभूव) भवति (ऋतस्य) सत्यस्य कारणस्य (सामन्) सामन्यन्ते कर्मणि (सरम्) प्राप्तव्यम् (आरपन्ती) व्यक्तशब्दं वदन्ति ॥२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! या ऋतस्य सरमारपन्त्याबभूव यामिमामृतस्य रशनां विदथेषु पूर्व आयुषि कव्या अगृभ्णन् साऽस्मिन् सुते नः सामन्नाबभूव ॥२ ॥
भावार्थभाषाः - यथा रशनया बद्धाः प्राणिन इतस्ततः पलायितुं न शक्नुवन्ति, तथा युक्त्या धृतमायुरकाले न पलायते ॥२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे दोरीने बांधलेले प्राणी इकडे तिकडे पळू शकत नाहीत. तसे युक्तिपूर्वक वागल्यास योग्य वेळेखेरीज माणसाच्या आयुष्याचा अंत होऊ शकत नाही.